जानाँ दिल का शहर, नगर अफ़सोस का है
तेरा मेरा सारा सफ़र अफ़सोस का है
किस चाहत से ज़हरे-तमन्ना माँगा था
और अब हाथों में साग़र अफ़सोस का है
इक दहलीज पे जाकर दिल ख़ुश होता था
अब तो शहर में हर इक दर अफ़सोस का है
हमने इश्क़ गुनाह से बरतर जाना था
और दिल पर पहला पत्थर अफ़सोस का है
देखो इस चाहत के पेड़ की शाख़ों पर
फूल उदासी का है समर अफ़सोस का है
कोई पछतावा सा पछतावा है 'फ़राज़'
दुःख का नहीं अफ़सोस मगर अफ़सोस का है
Sunday, November 30, 2014
जानाँ दिल का शहर नगर अफ़सोस का है / फ़राज़
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उम्दा कलाम !!
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