Pages

Friday, November 28, 2014

खुल गई नाव / अज्ञेय

       खुल गई नाव
घिर आई संझा, सूरज
        डूबा सागर-तीरे।

धुंधले पड़ते से जल-पंछी
भर धीरज से
        मूक लगे मंडराने,
सूना तारा उगा
चमक कर
        साथी लगा बुलाने।

तब फिर सिहरी हवा
लहरियाँ काँपीं
तब फिर मूर्छित
व्यथा विदा की
        जागी धीरे-धीरे।

स्वेज अदन (जहाज में), 5 फरवरी, 1956

अज्ञेय

0 comments :

Post a Comment