Pages

Saturday, November 29, 2014

प्रेम-च्यार / ओम नागर

प्रेम-
आंख की कोर पे
धर्यो एक सुपनो
ज्ये रोज आंसू की गंगा में
करै छै अस्नान
अर निखर जावै छै
दूणो।

ओम नागर

0 comments :

Post a Comment