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Tuesday, November 25, 2014

हे दिवाकर! / कविता मालवीय

हे दिवाकर!
तुममें ऐसा क्या है यार
निखरते हो
तो महफ़िल की वाहवाही समेट लेते हो
डूबते हो
तो आहों से जग को लपेट लेते हो
तुम कभी
उच्चतर भावना से ग्रस्त नहीं होते!
कृष्ण के बचपन में,
दीवानों (कवि) की जमात में
सुबहो शाम शामिल रहने से पस्त नहीं होते
शायर हो क्या?
जो मुश्किलात (चंद्रग्रहण) में भी
दर्द की हर अंगडाई का
फ़साना बना देते हो
दंगाई हो क्या?
जो अच्छे भले
शांत माहौल में आग लगा देते हो?
तुममें ऐसा क्या है यार

कविता मालवीय

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