हम हैं जिन्हों ने नाम-ए-चमन बू नहीं किया
आई सबा जिधर से उधर रू नहीं किया
हम हैं हवा-ए-नस्ल में उस गुल की दर-ब-दर
जिस का सबा ने तौफ-ए-सर-ए-कू नहीं किया
वो ख़ूब-रू है कौन सा जग में फरिश्ता-वश
दो रोज़ मिल के हम जिसे बद-ख़ू नहीं किया
‘काएम’ को इस तरह से तू देता है गालियाँ
जिस को किसी ने आज तलक तू नहीं किया
Saturday, November 29, 2014
हम हैं जिन्हों ने नाम-ए-चमन बू नहीं किया / 'क़ाएम' चाँदपुरी
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