ज़िक्र मत करना मेरी रुसवाई का ।
वो बना देता है पर्वत राई का ।
कोई कहता है असर चश्मे का है,
कोई कहता है हुनर बीनाई का ।
हो गए मुँह बन्द अच्छे अच्छों के,
जब खुला दर झूठ की सच्चाई का ।
जो बड़े थे वो भी छोटे हो गए,
कौन पूछे हाल छोटे भाई का ।
बिक गई बिकती न जो मेरी किताब,
एक ये भी फल मिला रुसवाई का ।
डूबने की चाह कर बैठे ’नदीम’
हमको अन्दाज़ा न था गहराई का ।
Friday, November 28, 2014
ज़िक्र मत करना मेरी रुसवाई का / ओम प्रकाश नदीम
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