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Thursday, November 27, 2014

वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी / इक़बाल

वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
मेरे काम कुछ न आया ये कमाल-ए-नै-नवाज़ी

मैं कहाँ हूँ तू कहाँ है ये मकाँ के ला-मकाँ है
ये जहाँ मेरा जहाँ है के तेरी करिश्मा-साज़ी

इसी कशमकश में गुज़रीं मेरी ज़िंदगी की रातें
कभी सोज़-ओ-साज़-ए-'रूमी' कभी पेच-ओ-ताब-ए-'राज़ी'

वो फ़रेब-ख़ुर्दा शाहीं के पला हो करगसों में
उसे क्या ख़बर के क्या है रह-ओ-रस्म-ए-शाहबाज़ी

न ज़बाँ कोई ग़ज़ल की न ज़बाँ से बा-ख़बर मैं
कोई दिल-ए-कुशा सदा हो अजमी हो या के ताज़ी

नहीं फ़क़्र ओ सल्तनत में कोई इम्तियाज़ ऐसा
ये सिपह की तेग़-बाज़ी वो निगह की तेग़-बाज़ी

कोई कारवाँ से टूटा कोई बद-गुमाँ हरम से
के अमीर-ए-कारवाँ में नहीं ख़ू-ए-दिल-नवाज़ी

अल्लामा इक़बाल

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