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Friday, November 28, 2014

ओ केरल प्रिय-2 / कुबेरदत्त

केरल के ये लम्बे कौवे
चम्पा के अधेड़ तरुवर पर
                      फुदकें, चहकें
दिन-भर मलयालम में बोलें
भेषज के रहस्य को खोलें
धनवंतरी
चरक के
नुस्खों की
करते हैं सहज व्याख्या
अँग्रेज़ीदाँ बहरे हैं पर
शिर-पीड़ा-निदान हित दौड़ें केमिस्टों तक
जीवन को ऐस्प्रीन बनाया
                           दीन बनाया
                           हीन बनाया
कव्वे बोल-बोल थकते हैं
आधुनिकों के नेता कहते—
'ये तो ऐसे ही बकते हैं' ।

कुबेरदत्त

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