निश्चय ही राष्ट्र की इमारत के वे ठेकेदार
वंचक हैं, राष्ट्रद्रोही हैं
खिलाया जिन्होंने हमें माँग-चाँग लाए
घुने गेहूँ का दलिया,
पिलाया निःसत्त्व विदेशी पाउडर का दूध,
रटाया अहिंसक नाम बुद्ध का
और आश्वस्त रहे
कि ख़ूब बुद्धू बना छोड़ा है ।
भुलाकर शक्ति-पूजा राम की
चलाया चक्र अशोक का ।
भुलाकर श्रम और स्वावलंबन का महत्त्व
आदत डलवाई
मुफ्तख़ोरी, कामचोरी, बेरोज“गारी-रिश्वतख़ोरी की,
सत्ता के लोभ में भूलकर स्वदेश-भक्ति
टुकड़े-टुकड़े तोड़ा सुसंगठित समाज को,
परोसा स्वराज्य का प्रसाद ।
जाति, धर्म, अगड़े-पिछड़े
भाषा और क्षेत्रा के अलग-अलग कटोरे में
कृषि-सभ्यता के मेरुदंड गो-वंश को भेजा कसाई-घर
विदेशी मुद्रा के लोभ में बेचारे
बनकर रह गए पूरे कसाई ।
आज जब घुस-पैठ
ख़ूँरेजी करने लगे हैं दस्यु,
तब तुम आतंकित हो माँगते हो हमसे
धन, बल और वीरता
शक्ति और शूरता !
हे अभागी जनता के भाग्यवान नेता,
क्या सचमुच चाहते हो कि
राष्ट्र शक्तिशाली हो?
तो, तोड़ो भ्रम-जाल, दूर फेंको सारे छद्म वेश,
एक प्रण, एक प्राण, एकनिष्ठ श्रद्धा से
निश्छल एकात्म भाव से
गूँथो एक सूत्र में बिखरे फूल-शक्ति के
अर्पित करो भारत माता को।
शक्ति और श्रद्धा का अर्ध्य
तुम नरसिंह हो, धधका दो फिर शक्ति-ज्वाला
वाहन हो शक्ति के, तुम सिंह-गर्जना करो !
रचनाकाल : चीनी और पाकिस्तानी आक्रमण के बाद, 1965
Thursday, November 27, 2014
नश्तर और नुस्ख़ा / अमोघ
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