कोई भटकता बादल
दूर इक शहर में जब कोई भटकता बादल
मेरी जलती हुई बस्ती की तरफ़ जाएगा
कितनी हसरत[1] से उसे देखेंगी प्यासी आँखें
और वो वक़्त की मानिंद[2] गुज़र[3] जाएगा
जाने किस सोच में खो जाएगी दिल की दुनिया
जाने क्या-क्या मुझे बीता हुआ याद आएगा
और उस शह्र का बे-फैज़[4]भटकता बादल
दर्द की आग को फैला के चला जाएगा
Tuesday, November 25, 2014
कोई भटकता बादल / फ़राज़
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