चमन में कौन है पुरसाने-हाल शबनम का?
ग़रीब रोई तो ग़ुंचों को भी हँसी आई
नवेदे-ऐश से भी लुत्फ़े-ऐश मिल न सका
लिबासे-ग़म ही में आई अगर ख़ुशी आई
अजब न था कि ग़मे-दिल शिकस्त खा जाता
हज़ार शुक्र तेरे लुत्फ़ में कमी आई
दिए जलाए उम्मीदों ने दिल के गिर्द बहुत
किसी तरफ़ से न इस घर में रोशनी आई
हज़ार दीद पै पाबन्दियां थीं, पर्दे थे
निगाहे-शौक़ मगर उनको देख ही आई
Thursday, November 27, 2014
ग़रीब रोई तो ग़ुंचों को भी हँसी आई / अर्श मलसियानी
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