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Sunday, November 30, 2014

फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए / उर्फी आफ़ाक़ी

फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए
यकसर जहान ही को न जब तक डुबोइए

दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ
काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए

आँसू जहाँ भी जिस की भी आँखों में देखिए
मोती समझ के रिष्ता-ए-जाँ में पिरोइए

हर सुब्ह इक ज़जीरा-ए-नौ की तलाश में
साहिल से दूर शोरिश-ए-तूफ़ाँ के होइए

उर्फी आफ़ाक़ी

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