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Monday, November 3, 2014

हँसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो / ओमप्रकाश यती


हँसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो
अभी कुछ देर सपनों को हमारे साथ रहने दो।

तुम्हें फुरसत नहीं तो जाओ बेटा आज ही जाओ
मगर दो रोज़ बच्चों को हमारे साथ रहाने दो।

ये जंगल कट गए तो किसके साए में गुज़र होगी
हमेशा इन बुजुर्गों को हमारे साथ रहने दो।

हरा सब कुछ नहीं है इस धरा पर हम दिखा देंगे
ज़रा सावन के अंधों को हमारे साथ रहने दो।

ग़ज़ल में, गीत में, मुक्तक में ढल जाएंगे ये इक दिन
भटकते फिरते शब्दों को हमारे साथ रहने दो।

ओमप्रकाश यती

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