मुझे कैसी नज़र से देखता है
मेरा होना भी जैसे हादसा है
हमारे दर्द का चेहरा नहीं है
उसे तू यार कब पहचानता है
मेरे उजड़े मकाँ के आईने में
तेरा चेहरा ही अक्सर झाँकता है
मुझे देकर वो थोड़ा-सा दिलासा
वो मुझ से आज क्या-क्या माँगता है
जिसे कहते हैं सारे लोग वहशी
हक़ीक़त में वो कोई दिलजला है
कोई आवाज़ बेमानी नहीं है
हवा ने कुछ तो पत्तों से कहा है
हमें ‘आज़ाद’ कहता है ज़माना
मगर ये तंज भी कितना बड़ा है
Monday, November 3, 2014
मुझे कैसी नज़र से देखता है / अज़ीज़ आज़ाद
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment