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Monday, November 3, 2014

जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा / 'अहसन' मारहरवी

जब तक अपने दिल में उन का ग़म रहा
हसरतों का रात दिन मातम रहा

हिज्र में दिल का न था साथी कोई
दर्द उठ उठ कर शरीक-ए-ग़म रहा

कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
बेकसी का क़ब्र पर मातम रहा

सैकड़ों सर तन से कर डाले जुदा
उन के ख़ंजर का वही दम ख़म रहा

आज इक शोर-ए-क़यामत था बपा
तेरे कुश्तो का अजब आलम रहा

हसरतें मिल मिल के रोतीं यास से
यूँ दिल-ए-मरहूम का मातम रहा

ले गया ता कू-ए-यार ‘अहसन’ वही
मुद्दई कब दोस्तों से कम रहा

'अहसन' मारहरवी

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