Pages

Wednesday, January 22, 2014

एहसास / अबरार आज़मी

लम्हात का हयूला कुछ भूलने लगा था
आवाज़ का सरापा कुछ ऊँघने लगा था
सन्नाटा पा-शिकस्ता कुछ बोलने लगा था
वहश्त-ज़दा सा कमरा कुछ ढूँडने लगा था
मेरा शुऊर ज़द में तहत-ए-शुऊर की था

अबरार आज़मी

0 comments :

Post a Comment