* 
 पाकर ख़िताब नाच का भी ज़ौक़ हो गया
 ‘सर’ हो गये, तो ‘बाल’ का भी शौक़ हो गया
  *
 बोला चपरासी जो मैं पहुँचा ब-उम्मीदे-सलाम-
 "फाँकिये ख़ाक़ आप भी साहब हवा खाने गये"
  *
 ख़ुदा की राह में अब रेल चल गई ‘अकबर’!
 जो जान देना हो अंजन से कट मरो इक दिन.
  *
 क्या ग़नीमत नहीं ये आज़ादी
 साँस लेते हैं बात करते हैं!
  * 
 तंग इस दुनिया से दिल दौरे-फ़लक़ में आ गया
 जिस जगह मैंने बनाया घर, सड़क में आ गया 
Friday, November 7, 2014
हास्य-रस -दो / अकबर इलाहाबादी
Subscribe to:
Post Comments
                                (
                                Atom
                                )
                              


0 comments :
Post a Comment