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Friday, November 7, 2014

ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा / आनंद बख़्शी

 
ये लाल रँग कब मुझे छोड़ेगा
मेरा ग़म, कब तलक़, मेरा दिल तोड़ेगा
ये लाल रँग ...

किसी का भी लिया नाम तो, आई याद, तू ही तू
ये तो प्याला शराब का, बन गया, ये लहू
ये लाल रँग ...

पीने कि क़सम डाल दी, पीयूँगा किस तरह
ये ना सोचा तूने यार मैं, जीयूँगा किस तरह
ये लाल रँग ...

चला जाऊँ कहीं छोड़ कर, मैं तेरा ये शहर
यहाँ तो ना अमृत मिले, पीने को, ना ज़हर
हाय, ये लाल रँग ...

आनंद बख़्शी

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