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Saturday, November 22, 2014

दिल को तस्कीन-ए-यार ले डूबी / ख़ुमार बाराबंकवी

दिल को तस्कीन-ए-यार ले डूबी
इस चमन को बहार ले डूबी

अश्क को पी गए हम उनके हूज़ूर
आहद-ए-इख्तियार ले डूबी

इश्क के कारोबार को अक्सर
गर्मिए कारोबार ले डूबी

तेरे हर मशवरे को ए नाशे
आज फिर आज याद-ए-यार ले डूबी

हाल-ए-गम उनसे बार-बार कहा
और हँसी बार-बार ले डूबी

चार दिन का ही साथ था लेकिन
ज़िन्दगी-ए-खुमार ले डूबी

ख़ुमार बाराबंकवी

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