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Tuesday, November 4, 2014

फेशबुक एक आत्‍मालोचना / कुमार मुकुल

अपना चेहरा उठाए
खड़े हैं हम बारहा
मुकाबिल आपके

अब आंखें हैं
पर दृष्टि नहीं है

मन हैं
पर उसकी उड़ान
की बोर्ड से कंपूटर स्‍क्रीन तक है

काम कम है हमारे पास
और उपलब्धियां हैं बेशुमार

जहालत और पीड़ा से भरे
इस जहान में
अपना चेहरा लिए
खड़े हैं हम

सबसे असंपृक्‍त

पहले आप
पहले आप की संस्‍क़ति
संभालते हुए

कुमार मुकुल

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