हर क़दम वो साथ है क्यों यह भरोसा छोड़ दें
क्या रहेगा पास गर तेरा सहारा छोड़ दें
रास्ते में चोर हैं, काँटे भी हैं, पत्थर भी हैं
डर के क्यों बाधाओं से हम राह चलना छोड़ दें
बस कि इक तेरी तमन्ना से है जीवन में बहार
कैसे मुम्किन है कि हम तेरी तमन्ना छोड़ दें
पीछे-पीछे आ रहे हैं और भी राही बहुत
हर ठिकाने पर चिराग़ों को चमकता छोड़ दें
इसमें आशाएँ भी हैं, सपने भी हैं, यादें भी हैं
दोस्तो! तुम ही कहो कैसे यह दुनिया छोड़ दें
Friday, April 4, 2014
हर क़दम वो साथ है क्यों यह भरोसा छोड़ दें / गिरिराज शरण अग्रवाल
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