तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई
प्यारे ये नहव ओ सर्फ ये गुफ्तार है कोई
ठोकर में हर कदम की तड़पते हैं दिल कई
ज़ालिक इधर तो देख ये रफ्तार है कोई
जूँ शाख़-ए-गुल है फ्रिक में मेरी शिकस्त की
मेरा गर उस चमन में हवा-दार है कोई
ज़ालिम ख़बर तो ले कहीं ‘काएम’ ही ये न हो
नालान ओ मुज़्तरिब पस-ए-दीवार है कोई
Thursday, April 17, 2014
तेरी ज़बाँ से ख़स्ता कोई ज़ार है कोई / 'क़ाएम' चाँदपुरी
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment