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Saturday, April 12, 2014

इक ज़माना था कि जब था कच्चे धागों का भरम / गणेश बिहारी 'तर्ज़'

इक ज़माना था कि जब था कच्चे धागों का भरम
कौन अब समझेगा कदरें रेशमी ज़ंजीर की

त्याग, चाहत, प्यार, नफ़रत, कह रहे हैं आज भी
हम सभी हैं सूरतें बदली हुई ज़ंजीर की

किस को अपना दुःख सुनाएँ किस से अब माँगें मदद
बात करता है तो वो भी इक नई ज़ंजीर की

गणेश बिहारी 'तर्ज़'

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