प्रत्यंचित भौंहों के आगे
समझौते केवल समझौते।
- भीतर चुभन सुई की,
- बाहर सन्धि-पत्र पढ़ती मुस्कानें।
- जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं,
- कैसे हैं ईश्वर ही जाने।
- भीतर चुभन सुई की,
आंधी से आतंकित चेहरे
गर्दख़ोर रंगीन मुखौटे।
- जी होता आकाश-कुसुम को,
- एक बार बाहों में भर लें।
- जी होता एकान्त क्षणों में
- अपने को सम्बोधित कर लें।
- जी होता आकाश-कुसुम को,
लेकिन भीड़ भरी गलियाँ हैं
काग़ज़ के फूलों के न्योते।
- झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा
- में चलते हाथी का जीवन।
- जिसके ऊपर मोती की झालर
- लेकिन अंकुश का शासन।
- झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा
अधजल घट से छलक रहे हैं
पीठ चढ़े जो सजे कठौते।
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