कहाँ गया वह शहर
जहाँ साल में वारदात-ए-हत्या बमुश्किल होती रही
जहाँ छोटी बाजार की रामलीला
पोला ग्राउंड का पोला दशहरा और
स्टेडियम का होली कवि सम्मेलन
बस होते मनोरंजन के साधन रहवासियों के
जहाँ आँखें पोंछते दिखाई देतीं पाटनी टाकीज से
फिल्म देखकर निकली महिलाएँ
टोकनी में फल और फुटाने रखकर
घर-घर आवाजें लगातीं फलवालियाँ
मज़े से गपियाती चूड़ी पहनाती चूड़ीवालियाँ
रिक्शेवाला पता नहीं, पूछता था किसके घर जाना है
जहाँ से जाने का नाम नहीं लेते थे
जाने कहाँ-कहाँ से ट्रांसफर पर आए
बाबू पटवारी और छोटे बड़े अध्यापक
वे कुछ दिनों के लिए आए और
उनकी पीढ़ियाँ यहीं की होकर रह गईं
Tuesday, April 15, 2014
छिन्दवाड़ा-2 / अनिल करमेले
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