हर तरफ़ रौशनी है सूरज की ।
वाह क्या ज़िन्दगी है सूरज की ।
आँख देखा भी सच नहीं होता,
चाँदनी, रौशनी है सूरज की ।
प्यास को और भी बढ़ाती है,
धूप, ऐसी नदी है सूरज की ।
आसमाँ सुर्खरू-सा लगता है,
पालकी आ रही है सूरज की ।
ताकि ख्वाबीदा लोग जाग उठें,
इसलिए बात की है सूरज की ।
Tuesday, April 15, 2014
हर तरफ़ रौशनी है सूरज की / ओम प्रकाश नदीम
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