इस उस के असर में रहे
हम फँसे भँवर में रहे
हाथ में उठाते पत्थर कैसे
उम्र भर काँच-घर में रहे
पहुँच कर भी नहीं पहुँचे कहीं
यूँ तो रोज़ सफ़र में रहे
झूठी नामवरी के लिए उलझे
बे-परों की ख़बर में रहे
काम एक भी न कर पाए ढंग का
खोए बस अगर-मगर में रहे
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