बर्फ़ हो जाना किसी तपते हुए अहसास का
क्या करूँ मैं ख़ुद से ही उठते हुए विश्वास का
आँधियों से लड़ के गिरते पेड़ को मेरा सलाम
मैं कहाँ क़ायल हुआ हूँ सर झुकाती घास का
नाउम्मीदी है बड़ी शातिर कि आ ही जाएगी
हम रोशन किए बैठे हैं दीपक आस का
देखकर ये आसमाँ को भी बड़ी हैरत हुई
पढ़ कहाँ पाया समंदर ज़र्द चेहरा प्यास का
घर मेरे अक्सर लगा रहता है चिड़ियों का हुजूम
है मेरा उनसे कोई रिश्ता बहुत ही पास का
Wednesday, April 16, 2014
बर्फ़ हो जाना किसी तपते हुए अहसास का / कुमार विनोद
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment