दिल-ए-बे-ताब के हम-राह सफ़र में रहना
हम ने देखा ही नहीं चैन से घर में रहना
स्वांग भरना कभी शाही कभी दुर्वेशी का
किसी सूरत से मुझे उस की नज़र में रहना
एक हालत पे बसर हो नहीं सकती मेरी
जाम-ए-ख़ाक कभी ख़िलअत-ए-ज़र में रहना
दिन में है फ़िक्र-ए-पस-अंदाज़ी-ए-सरमाया-ए-शब
रात भर काविश-ए-सामान-ए-सहर में रहना
दिल से भागे तो लिया दीदा-ए-तर ने गोया
आग से बच के निकलना तो भँवर में रहना
अहल-ए-दुनिया बहुत आराम से रहते हैं मगर
कब मयस्सर है तेरी राह-गुज़र में रहना
वस्ल की रात गई हिज्र का दिन भी गुज़रा
मुझे वारफ़्तगी-ए-हाल-ए-दिगर में रहना
कर चुका है कोई अफ़लाक ओ ज़मीं की तकमील
फिर भी हर आन मुझे अर्ज़-ए-हुनर में रहना
Thursday, April 17, 2014
दिल-ए-बे-ताब के हम-राह सफ़र / अहमद 'जावेद'
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