सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम
मस्त-ए-शराब-ए-शौक़ हूँ ख़य्याम की क़सम
इशरत-फ़रोश था मेरा गुज़रा हुआ शबाब
कहता हूँ खा के इशरत-ए-अय्याम की क़सम
होती थी सुब्ह-ए-ईद मेरी सुब्ह पर निसार
खाती थी शाम-ए-ऐश मेरी शाम की क़सम
'अख़्तर' मज़ाक़-ए-दर्द का मारा हुआ हूँ मैं
खाते हैं अहल-ए-दर्द मेरे नाम की क़सम
Sunday, April 13, 2014
सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम / अख़्तर अंसारी
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