Pages

Monday, April 14, 2014

सीतल सदन में सीतल भोजन भयौ / कुम्भनदास

सीतल सदन में सीतल भोजन भयौ,
सीतल बातन करत आई सब सखियाँ ।
छीर के गुलाब-नीर, पीरे-पीरे पानन बीरी,
आरोगौ नाथ ! सीरी होत छतियाँ ॥
जल गुलाब घोर लाईं अरगजा-चंदन,
मन अभिलाष यह अंग लपटावनौ ।
कुंभनदास प्रभु गोवरधन-धर,
कीजै सुख सनेह, मैं बीजना ढुरावनौ ॥

कुम्भनदास

0 comments :

Post a Comment