ढूंढ़ता है आदमी, सदियों से दुनिया, में सुकून।
धूप में साया मिले, कमल जाये सहरा में सुकून।
छटपटाती है किनारों, पर मिलन की आस में
हर लहर पा जाती है, जाकर के दरिया में सुकून।
बेक़रारी है कभी, पूरे समन्दर की तरह,
और कभी मिल जाता है बस, एक क़तरे में सुकून।
ज़िन्दगी को इससे ज्य़ादा और क्या कुछ चाहिए?
लबस हो इक प्यार का, और उसके लमहात में सुकून।
हर सवाली चेहरे पे लिख़ी इबारत देखिए,
चैन है कि न आँखों में, और कौन से दिल में सुकून।
वो खुदा से कम नहीं लगता है, मुझको दोस्तो,
मेरे ख़ातिर माँगता है जो दुआओं में सुकून।
ये उसी दामन की भीनी खुशबू का एहसास है,
जो मुझे महसूस होता है हवाओं में सुकून।
Wednesday, April 16, 2014
ढूँढ़ता है आदमी सदियों से दुनिया में सुकून / इकराम राजस्थानी
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