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Saturday, April 12, 2014

आधे से आधा चुन लेता / अमित कल्ला

आधे
से
आधा
चुन लेता

अपने आप
पानी सा
सब पर प्रकट होता है

चाक चढा समय
उस भूले दृश्य को
गंतव्य की
साझेदारी देता ,
पैने - पैने शब्दों की
विसर्जित मात्राओं
के साथ
अगली कडियाँ जोड़
फिर
दोहराता
तराशने वाला
तिलिस्मी हिसाब ,

अधिकांश
सिर्फ
आभास में
रख देते

कोई
आधे
से
आधा
चुन लेता

अमित कल्ला

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