म्वार देसवा हवै आजाद,
हमार कोउ का करिहै।
कालेज ते चार-पाँच डिग्री बटोरिबै,
लड़िबै चुनाव, याक कुरसी पकरिबै,
कुरसी पकरि जन-सेवक कहइबै,
पेट्रोल-पंपन के परमिट बटइबै,
खाली गुल्लक करब आबाद
हमार कोउ का करिहै।
गाँधी रटबु रोजु आँधी मचइबै,
किरिया करबु गाल झूठै बजइबै,
दंगा मचइबै, फसाद रचइबै,
वोटन की बेरिया लासा लगइबै,
फिरि बनि जइबै छाती का दादु,
हमार कोउ का करिहै॥
संसद मां बैठि रोजु हल्ला मचइबै,
देसी विदेसी मां भासनु सुनइबै,
घर मां कोऊ स्मगलिंग करिहै,
कोऊ डकैतन ते रिश्ता संवरिहै,
धारि खद्दर बनब नाबाद,
हमार कोउ का करिहै॥
बहुरी समाजवाद जब हम बोलइबै,
आँखिन मां धूरि झोंकि दारिद छिपइबै,
भारत उठी जब-जब हम उठइबै,
भारत गिरी जब-जब हम गिरइबै,
कोऊ अभिरी करब मुरदाद,
हमार कोउ का करिहै॥
Wednesday, April 16, 2014
म्वार देसवा हवै आजाद / उमेश चौहान
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