क्यों किसी रहबर से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता। मौजे-दरिया खु़द लगा लेती है साहिल का पता॥ राहबर रहज़न न बन जाये कहीं, इस सोच में। चुप खड़ा हूँ भूलकर रस्ते में मंज़िल का पता॥
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