Pages

Saturday, March 29, 2014

कोई इशारा कोई इस्तिआरा क्यूँकर हो / असलम इमादी

कोई इशारा कोई इस्तिआरा क्यूँकर हो
अब आसमान-ए-सुख़न पर सितारा क्यूँकर हो

अब उस के रंग में है बेशतर तग़ाफ़ुल सा
अब उस के तौर शनासी का चारा क्यूँकर हा

वो सच से ख़ुश न अगर हो तो झूठ बोलेंगे
कि वो जो रूठे तो अपना गुज़ारा क्यूँकरहो

उन्हें ये फ़िक्र कि दिल को कहाँ छुपा रक्खें
हमें ये शौक़ कि दिल का ख़सारा क्यूँकर हो

उरूज कैसे हो ज़ौक़-ए-जुनूँ को अब ‘असलम’
सुकूँ का आइना अब पारा पारा क्यूँकर हो

असलम इमादी

0 comments :

Post a Comment