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Friday, March 28, 2014

चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था / आनंद बख़्शी

 
चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था
हाँ तुम बिलकुल वैसी हो जैसा मैंने सोचा था

ना रस्में हैं ना कसमें हैं
ना शिकवे हैं ना वादे हैं
इक सूरत भोली भाली है
दो नैना सीधे सादे हैं
दो नैना सीधे सादे हैं
ऐसा ही रूप खयालों में था
जैसा मैंने सोचा था, हाँ ...

मेरी खुशियाँ ही ना बाँटे
मेरे ग़म भी सहना चाहे
देखे ना ख्वाब वो महलों के
मेरे दिल में रहना चाहे
इस दुनिया में कौन था ऐसा
जैसा मैंने सोचा था, हाँ ...

आनंद बख़्शी

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