माचिस की डिब्बी
डिब्बी में तीली
बाहर-भीतर की यह
आदत ज़हरीली।
सिकुड़ी-सी
लगतीं है
इस घर में आँतें
चौखट के बाहर हैं
समता की बातें
मूल्यों का कैसे
निर्वाह करें बोलो
अब है उठान कम
पर आवक खर्चीली?
एक अदद प्राण और
छः-छः दीवारें
अफनाएँ अक्सर-हम
पर किसे पुकारें?
तेजी का झोंका औ’
मंदी का दौर
भर आईं फिर-फिर से
आँखें सपनीली।
Sunday, March 30, 2014
प्राण / इष्टदेव सांकृत्यायन
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