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Monday, March 31, 2014

कभी फूलों कभी खारों से बचना / अनवर जलालपुरी

कभी फूलों कभी खारों से बचना
सभी मश्कूक़ किरदारों से बचना

हरीफ़ों से भी मिलना गाहे गाहे
जहाँ तक हो सके यारों से बचना

जो मज़हब ओढ़कर बाज़ार निकलें
हमेशा उन अदाकारों से बचना

ग़रीबों में वफ़ा ह उनसे मिलना
मगर बेरहम ज़रदारों से बचना

हसद भी एक बीमारी है प्यारे
हमेशा ऐसे बीमारों से बचना

मिलें नाक़िद करना उनकी इज़्ज़त
मगर अपने परस्तारों से बचना

अनवर जलालपुरी

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