इन परिंदों का नहीं है ज़ोर कुछ तूफ़ान पर
लौटकर आना है इनको फिर इसी जलयान पर
ज़िंदगी चिथड़ों में लिपटी भूख को बहला रही
और हम फिर भी फ़िदा हैं अधमरे ईमान पर
हरिया, जुम्मन और जोसफ़ सब के सब बेकार हैं
फ़ख़्र हम कैसे करें फिर आज के विज्ञान पर
ज़िंदगी यूँ तो गणित है, पर गणित-सा कुछ नहीं
चल रही है इसकी गाड़ी अब महज़ अनुमान पर
जिसको इज़्ज़त कह रहे हो, दर हक़ीक़त कुछ नहीं
हर नज़र है आपके बस कीमती सामान पर !
Monday, March 31, 2014
इन परिंदों का नहीं है ज़ोर कुछ तूफ़ान पर / अश्वघोष
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