बैद को बैद गुनी को गुनी ठग को ठग ढूमक को मन भावै ।
काग को काग मराल मराल को कान्ध गधा को खजुलावै ।
कृष्ण भनै बुध को बुध त्योँ अरु रागी को रागी मिलै सुर गावै ।
ग्यानी सो ग्यानी करै चरचा लबरा के ढिँगै लबरा सुख पावै ।
कृष्णदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Saturday, March 29, 2014
बैद को बैद गुनी को गुनी / कृष्णदास
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