एक बार फिर मैं
दूर हूँ सबसे
नंगे पाँव चलती हूँ
अहसासों की कच्ची सड़क पे
अपनी ही सोच की दीवार तले
पली बढ़ी मैं
हर बार अलग हो जाती हूँ सबसे
अकेलेपन का दर्द
छोटा पड़ जाए
अगर मैं अपनी सोच को सार्थक कर सकूँ
लेकिन मेरी सोच का सार्थक होना अभी बाकी है
बाकी है अकेलापन
कुछ चोटें, कुछ रिस रहे घाव
तब भी
सबसे जुड़ने, सबके देने,
सबसे पाने का सपना
अभी बाकी है
पूरा होगा कभी सपना मेरा
या सबसे जुड़कर भी
अलग थलग पड़ जाऊँगी मैं
ज़िंदगी के इस मोड़ का
हिसाब अभी बाकी है
Saturday, March 29, 2014
बाकी कुछ / इला प्रसाद
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