ये तो है कि घर को हम बचा नहीं सके,
चक्रवात पर हमें झुका नहीं सके.
ये भी है की मंज़िलें कभी नहीं मिलीं,
रास्ते मगर हमें थका नहीं सके.
हम किसी की ओट में नहीं थे पर हमें,
आँधियों के सिलसिले बुझा नहीं सके.
देखिए गुलाब की तरफ भी एक बार,
फूल क्या जो ख़ार से निभा नहीं सके.
अंधकार के हज़ार संगठन कभी,
रौशनी के वंश को मिटा नहीं सके.
Friday, March 28, 2014
ये तो है कि घर को हम बचा नहीं सके, / अशोक रावत
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