कुछ बला और कुछ सितम ही सही
इश्क़ में फ़ुर्क़त-ए-सनम ही सही
जिस को चाहें उसे ख़ुशी दे दें
मेरे हिस्से में उन के ग़म ही सही
कितनी वीरान है सदाक़त भी
बुत-कदा गर नहीं हरम ही सही
मेरी ख़ुददारी-ए-वफ़ा देखो
सर झुकाने से सर क़लम ही सही
ज़िंदगी आज तेरा लुत्फ़ ओ करम
कम अगर है तो आज कम ही सही
जैसे मुमकिन हो बात रख लेना
'इंदिरा' का ज़रा भरम ही सही
Saturday, March 29, 2014
कुछ बला और कुछ सितम ही सही / इन्दिरा वर्मा
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