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Friday, March 28, 2014

मेरा मिथ्यालय / अजन्ता देव

आमंत्रण निमन्त्रण नहीं
अनायास खींच लेता है अपनी ओर
मेरा मिथ्यालय

श्रेष्ठ जनों के बीच
यहीं रचा जाता है
कलाओं का महारास

मेरे द्वार कभी बंद नहीं होते
वे खुले रहेंगे
तुम्हारे जाने के बाद भी ।

अजन्ता देव

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