इंकिशाफ़-ए-ज़ात के आगे धुआँ है और बस
एक तू है एक मैं हूँ आसमाँ है और बस
आईना-ख़ानों में रक़्िसंदा रूमूज़-ए-आगही
ओस में भीगा हुआ मेरा गुमाँ है और बस
कैनवस पर है ये किस का पैकर-ए-हर्फ़-ओ-सदा
इक नुमूद-ए-आरज़ू जो बे-निशाँ है और बस
हैरतों की सब से पहले सफ़ में ख़ुद मैं भी तो हूँ
जाने क्यूँ हर एक मंज़र बे-ज़ुबाँ है और बस
अजनबी लम्स-ए-बदन की रेंगती हैं चूँटियाँ
कुछ नहीं है साअत-ए-मौज-ए-रवाँ है और बस
Saturday, March 29, 2014
इंकिशाफ़-ए-ज़ात के आगे धुआँ है और बस / अशअर नजमी
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