सब कुछ होते हुए भी थोडी बेचैनी है
शायद मुझमे इच्छाओं की एक नदी है
कहीं पे भी जब कोई बच्चा मुस्काया है
फूलों के संग तितली भी तो खूब हंसी है
गर्माहट काफूर हो गयी है रिश्तों से
रगों मे जैसे शायद कोई बर्फ जमी है
सतरंगी सपनो की दुनिया मे तुम आकर
जब भी मुझको छू लेती हो ग़ज़ल हुयी है
Sunday, March 30, 2014
सब कुछ होते हुए भी थोडी बेचैनी है / कुमार विनोद
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment