बगैर छाँव के होता नहीं गुज़र उसका ।
हमारे साथ न हो पाएगा सफ़र उसका ।
बुलन्दियों से शुरूआत की थी दरिया ने,
ढलान ही में रहा उम्र भर सफ़र उसका ।
जो बात दफ़्न थी उस पर बना दिया है मज़ार,
पता नहीं ये अक़ीदत है या हुनर उसका ।
मैं सोचता हूँ मुझे फ़ायदा ही क्या होगा,
न कुछ भी कर नुक़सान मैं अगर उसका ।
हम एक-दूजे को ख़ूब जानते थे ’नदीम’
हमारा उस पे न हम पर हुआ असर उसका ।
Wednesday, March 26, 2014
बगैर छाँव के होता नहीं गुज़र उसका / ओम प्रकाश नदीम
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