जो तू शराब पिए क्यूँकि दिल कबाब न हो
लगे जब आग कहाँ तक ये ज़हरा आब न हो
ख़ुनुक गुज़रते हैं अय्याम-ए-इश्क़ दाग़ बग़ैर
कि सर्द होवे हवा जिस दिन आफ़ताब न हो
दिवाने शहर से याँ आ के चैन पाते हैं
ख़ुदा करे ये ख़राबा कभी ख़राब न हो
जो तू शराब पिए क्यूँकि दिल कबाब न हो
लगे जब आग कहाँ तक ये ज़हरा आब न हो
ख़ुनुक गुज़रते हैं अय्याम-ए-इश्क़ दाग़ बग़ैर
कि सर्द होवे हवा जिस दिन आफ़ताब न हो
दिवाने शहर से याँ आ के चैन पाते हैं
ख़ुदा करे ये ख़राबा कभी ख़राब न हो
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