हमारा ज़िक्र जो ज़ालिम को अंजुमन में नही। जभी तो दर्द का पहलू किसी सुख़न में नहीं॥ शहीदे-नाज़ की महशर में दे गवाही कौन? कोई लहू का भी धब्बा मेरे कफ़न में नहीं॥
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